RAIPUR. न्यूजअप इंडिया.कॉम
छत्तीसगढ़ में संपत्तियों के नामांतरण के मामले में राज्य शासन ने बहुत बड़ा बदलाव किया है। राज्य में अब तक संपत्तियों के पंजीयन के बाद नामांतरण का अधिकार तहसीलदार के पास होता था। अब यह अधिकार पंजीयन कार्यालय के रजिस्ट्रार और सब रजिस्ट्रार के हाथों में होगा। जमीन का पंजीयन होने के बाद ही खरीदार के नाम नामांतरण हो जाएगा। अब इस काम के लिए भूमि स्वामियों को पटवारी-तहसीलदार के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। शासन की इस पहल से भ्रष्टाचार और जमीन संबंधी फर्जीवाड़ा पर अंकुश लगेगा।
राजस्व एवं आपदा प्रबंधन द्वारा जारी अधिसूचना के तहत अब पंजीयन अधिकारी रजिस्ट्रार या सब-रजिस्ट्रार को उस क्षेत्र में पंजीकृत विक्रय पत्रों के आधार पर भूमि के हस्तांतरण का अधिकार सौंपा गया है। पूर्व में यह अधिकार तहसीलदार को प्राप्त था। जो कि भू-राजस्व संहिता की धारा 110 के तहत कार्य करते थे। अब इस बदलाव से भूमि क्रय-विक्रय प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी और आम नागरिकों को कम समय में प्रमाण-पत्र प्राप्त होगा। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग सचिव अविनाश चंपावत ने बताया कि यह अधिसूचना 24 अप्रैल 2025 से प्रभाव में आ चुकी है और इसे सभी जिलों में लागू करने के निर्देश दिए गए हैं।
ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया जा रहा
नामांतरण का अधिकार रजिस्ट्रार-सब रजिस्ट्रार को दिए जाने के साथ ही इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए बदलाव किए जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इस काम के लिए ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जा रहा है। इस पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्री होने के तुरंत बाद ही नामांतरण हो जाएगा। इस प्रक्रिया से संपत्ति का फर्जी नामांतरण पूरी तरह से बंद हो जाएगा। जमीन कारोबार और पंजीयन प्रक्रिया के जानकार इसे संपत्ति क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं।
संपत्ति खरीदने वालों को नहीं होगी परेशानी
राज्य सरकार के इस फैसले का व्यापक असर होने की संभावना है। दरअसल, राज्य में दशकों से यह व्यवस्था बनी हुई थी कि अगर कोई व्यक्ति जमीन, मकान या अन्य कोई संपत्ति खरीदता है तो उसका पंजीयन रजिस्ट्री दफ्तर यानी पंजीयन कार्यालय में किया जाता है। यहां तक की प्रक्रिया आसान है, लेकिन पंजीयन के बाद भी संपत्ति खरीदने वाला मालिक तब तक नहीं बनता है, जब तक उसके नाम पर संपत्ति का नामांतरण या प्रमाणीकरण न हो। लेकिन अब नई व्यवस्था लागू होने के बाद संपत्ति खरीदने वालों को मालिक बनने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि पंजीयन होने के बाद ही रजिस्ट्रार या सब रजिस्ट्रार नामांतरण कर सकेंगे। सरकार ने उन्हें ये अधिकार दे दिया है।
नामांतरण के लिए 7 से 10 हजार रुपये तय
नामांतरण को लेकर लोगों की परेशानी उस समय शुरू होती थी, जब वे अपनी संपत्ति के पंजीकृत दस्तावेज लेकर अपने क्षेत्र के पटवारी या तहसीलदार के पास जाते थे। ऐसी हजारों शिकायतें होती थी कि पटवारी बिना लेनदेन किए नामांतरण की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाते थे। संपत्ति खरीदने वाले से उनके मूल दस्तावेज लेने के बाद पटवारी 15 दिन से लेकर 2-3 माह का समय इसी काम में लगाते थे। ऋण पुस्तिका (किसान किताब) बनाने के लिए 7 से 10 हजार रुपये पटवारी लेते हैं, जिसमें सबका हिस्सा होता है। पैसे नहीं दोगे तो काम होगा ही नहीं। नामांतरण की इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार होता था। यही नहीं नामांतरण में देरी की वजह से एक जमीन या मकान कई-कई बार बिक जाते थे, क्योंकि रिकार्ड में पुराने मालिक का ही नाम चढ़ा होता था।
