बिलासपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं उठाने के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि पिता की मौत के बाद मां की देखभाल बेटे का नैतिक और कानूनी दायित्व है। मां की सहमति से नौकरी मिली है, इसलिए वह जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। बेटे की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने फटकार लगाई और दस हजार रुपये प्रतिमाह आश्रित मां को देने का आदेश दिया है। रुपये नहीं देने पर एसईसीएल प्रबंधन को पुत्र के वेतन से कटौती कर सीधे मृतक की आश्रित पत्नी के खाते में जमा कराने का आदेश भी दिया है।
दरअसल, SECL में अनुकंपा नियुक्ति पाने के कुछ दिन बाद बेटे ने मां की देखभाल और खर्च देना बंद कर दिया था। परेशान मां ने हाईकोर्ट में एसईसीएल की नीति के अनुसार बेटे के वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपये प्रति माह दिलाये जाने याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने संबंधितों को नोटिस भी जारी किया। मामले में एसईसीएल ने जवाब में कहा कि नीति के अनुसार सहमति का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत राशि काट कर मृतक के आश्रितों के खाते में जमा किया जा सकता है। इसके बाद हाईकोर्ट ने बुजुर्ग महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और बेटे को रुपये देने को कहा।
जिम्मेदारी उठाने से बच नहीं सकतेः हाईकोर्ट
हाईकोर्ट की एकलपीठ के निर्णय के खिलाफ बेटे ने डबल बेंच में अपील की। उसने अपील में कहा कि उसे 79 हजार नहीं बल्कि 47 हजार रुपये वेतन मिलता है। इसमें भी EMI कट रही है। SECL के जवाब पर पुत्र ने कहा की याचिकाकर्ता को 5500 रुपये पेंशन मिल रही है। इसके अलावा मृतक के सेवानिवृत्त देयक राशि भी उन्हें मिली है। इससे वह अपनी देखभाल कर सकती है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डबल बेंच ने कहा कि मां की सहमति से नियुक्ति मिली है और उसकी जिम्मेदारी उठाने से आप बच नहीं सकते। 10 हजार रुपये देने की सहमति भी दी है, इसलिए खर्च के लिए राशि देना ही होगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पुत्र की अपील को खारिज कर दिया।