रायपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान प्रदेश में स्कूल भवनों के जीर्णोद्धार और अतिरिक्त कमरों के निर्माण के लिए स्कूल जनत योजना शुरू की गई थी। इस योजना के लिए तत्कालीन सरकार ने करीब 2 हजार करोड़ रुपये जारी किया था। अब सरकार को ऐसी शिकायतें मिली है कि इस योजना के तहत ज्यादातर काम हुए ही नहीं हैं और जो हुए हैं उनकी गुणवत्ता बेहद खराब है। शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए हैं।
विष्णुदेव साय सरकार में स्कूल शिक्षा विभाग की एक जुलाई को समीक्षा बैठक हुई थी, जिसमें शिकायतों और गड़बड़ी की जानकारी सामने आई थी। इसके बाद सीएम ने मुख्यमंत्री स्कूल जतन योजना के कार्यों की जांच कराने के निर्देश दिए हैं। अब स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने सभी कलेक्टरों को पत्र जारी कर साल 2022-23 में हुए कार्यों की गुणवत्ता की जांच के आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री स्कूल जतन योजना के कार्यों की जांच और गुणवत्ता की जानकारी 15 दिनों के अंदर संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय को अनिवार्य रूप से भेजने को कहा गया है।
विभागीय समीक्षा बैठक में सामने आई गड़बड़ी
2022-23 में भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में विपक्ष में बैठी भाजपा हमेशा ही कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाती रही। प्रदेश में अब सरकार बदल चुकी है। भाजपा की सरकार ने अपने कार्यकाल के 6 महीने पूरे कर लिए हैं। भाजपा की सरकार ने पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को उजागर करने के उद्देश्य से कार्यों की जांच कराने का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। विभागीय बैठक के दौरान प्रदेश में कई स्कूलों के जर्जर भवनों की शिकायतें सामने आई थी। कहीं पर स्कूल की छत गिरने तो कहीं पर जर्जर भवनों में पढ़ाई करने की बातें सामने आई है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने मरम्मत कार्यों की गुणवत्ता की जांच करने का फैसला लिया है।
सिविल कार्यों में भ्रष्टाचार, कमीशन भी फिक्स
सिविल से जुड़े कार्यों में भारी भ्रष्टाचार जगजाहिर है। टेंडर केवल दिखावा के लिए होता है। ठेकेदारों का सिंडिकेट बनाकर टेंडर डलवाया जाता है। काम को बांटा जाता है। ठेकेदारों को नुकसान न हो और निर्माण कार्य बीच में अधूरा छोड़कर न भागे इसलिए सभी कार्य अब एबो रेट पर होते हैं, बावजूद काम में गुणवत्ता होती ही नहीं है। काम की लागत के साथ बाबू से लेकर इंजीनियर और अफसरों तक कमीशन फिक्स होता है। यह कमीशन की राशि 16 से 22 प्रतिशत तक पहुंचती है। यानी एक करोड़ के काम में 22 लाख कमीशन में चला जाता है। अब मुख्यमंत्री के निर्देश पर जांच का आदेश तो दिया गया है, लेकिन गड़बड़ी सामने नहीं आएगी। ऐसा इसलिए की वही अफसर इसे जांच करेंगे, जिनकी निगरानी में यह काम हुआ है। निर्माण की देखरेख करने वाले अफसर अब अपने ही काम को गुणवत्ताहीन कैसे बताएंगे यह भी बड़ा सवाल है।