बिलासपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड (DMF) मद के कार्यों में हुए घोटाला को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच होने के बाद गड़बड़ी पर कार्रवाई भी की जाएगी। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में महालेखाकार ने बताया कि आडिट और जांच के बाद रिपोर्ट राज्य शासन को सौंपी गई है। जनहित याचिका में जांच और कार्रवाई की ही मांग की गई है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद शुक्रवार को याचिका निराकृत कर दिया।
जिला खनिज न्यास (DMF) की राशि का दुरुपयोग करते हुए कोरबा जिले में करीब 1200 करोड़ का घोटाला करने की याचिका लगाई गई थी। जिला खनिज न्यास मद के तहत पूरे प्रदेश के तमाम जिलों में कुल मिलाकर लगभग 10 हजार करोड़ का गोलमाल किया गया है। इसे लेकर कोरबा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार राठौर और 4 अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर बताया कि खनिज न्यास के कार्यों में नियमों का उल्लंघन किया गया है और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। डीएमएफटी रूल्स 2015 के नियम 25 (3) 12 (3) 12 (6 )12 (2) की अवहेलना की गई है। न्यास में लंबे समय से टीडीएस नहीं काटा जा रहा है।
रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी
याचिका में यह भी बताया गया कि महालेखाकार से वार्षिक ऑडिट भी नहीं कराया जा रहा है। खनिजों से हो रही आय की राशि का सही उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसका कहीं कोई हिसाब भी नहीं रखा जा रहा है। खनिज वाले जिलों को डीएमएफ की राशि नहीं मिल रही है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में महालेखाकार की ओर से कोर्ट को बताया कि प्रकरण के ऑडिट और जांच के बाद रिपोर्ट राज्य शासन को सौंप दी गई है। रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि जांच हो चुकी है और अब मामले में कार्रवाई भी होगी। याचिका में यही मांग की गई है। इसी आधार पर याचिका निराकृत की जा रही है।
खनिज देने वाले गांवों की हालत बदहाल
बता दें कि खनिज देने वाले गांवों की हाल बदहाल है। सड़क, पानी जैसी मुलभूत सुविधाओं के लिए भी जूझना पड़ रहा है। दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक के चूना पत्थर खदानों वाले गांवों की स्थिति खराब है। गांव के गलियों में पानी बह रहा है। सड़कें जर्जर है, नालियां नहीं है और जहां बनी है वह टूट गई हैं। सीएसआर के नाम पर कंपनियां दो-चार बर्तन और किताबें बांटकर गांव का विकास करने का दावा करती है। छोटे खदान संचालक तो सिर्फ खनिजों के दोहन में लगे हैं।