रायपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ में जनसमर्थन भाजपा की पक्ष आता दिख रहा है। एग्जिट पोल के परिणाम एकदम धराशायी हो गए। एग्जिट पोल के विपरीत परिणाम आए हैं। कुल मिलाकर भूपेश पर जनता ने भरोसा नहीं किया और मोदी की गारंटी काम कर कर गई। भाजपा के बढ़ते जीत के आंकड़ों के बाद अब मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। एक तरफ कांग्रेस के पास स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा था, लेकिन दूसरी ओर भाजपा मोदी और पार्टी के विजन पर यह चुनाव लड़ रही थी। अंततः चुनावी परिणाम बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है। अब इस हालत में वह किसे मुख्यमंत्री बनाएगी? जाहिर सी बात है, प्रधानमंत्री मोदी की पसंद का व्यक्ति ही छत्तीसगढ़ सहित राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनेगा।
छत्तीसगढ़ में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. रमन सिंह एक बार फिर से बीजेपी की पसंद होंगे या भाजपा किसी आदिवासी पर अपना दांव लगाएगी। वह किसी सांसद को मौका देगी या ब्यूरोक्रेसी को छोड़कर राज्य में कयास यह भी हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा मॉडल की तरह कोई ऐसा नाम सामने लेकर आ सकती है, जिसकी दूर-दूर तक कहीं कोई चर्चा नहीं है। टिकट बंटवारे के ज्यातादर फैसले हाईकमान से ही हुए हैं। ऐसी हालत में विधायकों की किसी एक नेता के साथ गोलबंदी दिखे ऐसा होता भी नहीं दिख रहा है। आइए इस बात का एनालिसिस करते हैं कि भाजपा यदि सत्ता में आती है तो उसके पास पांच वो कौन से नाम हैं, जिन्हें वह मुख्मंत्री बना सकती है।
डॉ. रमन को नहीं कर सकते हैं खारिज
तीन बार के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भले ही पार्टी ने मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया है, लेकिन उनकी दावेदारी को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। चुनाव से छह महीने पहले रमन सिंह जरूर बीजेपी में उपेक्षित थे, लेकिन जब चुनाव बेहद करीब आया तो हाईकमान ने टिकट देने में रमन सिंह की सुनी। केंद्रीय नेतृत्व यह बात जानता है कि रमन सिंह तीन बार सरकार चला चुके हैं और उन्हें राज्य चलाने की बेहतर समझ है। वह राज्य में लोकप्रिय रहे हैं। 2018 का चुनाव हारने के बाद उनकी सक्रियता कुछ कम हुई, लेकिन मुख्यमंत्री चुनते समय उनके अनुभव को दरकिनार कर देना कठिन होगा।
केंद्रीय नेतृत्व के प्रिय विजय बघेल
विजय बघेल की उम्मीदवारी मजबूत है। उसकी दो वजहें हैं। विजय बघेल सीएम भूपेश बघेल की ही जाति ओबीसी की कुर्मी समाज से आते हैं। वह मुख्यमंत्री के खिलाफ पाटन से ताल ठोंक रहे हैं। सासंद हैं। साफ-सुथरी छवि है। राज्य के स्थानीय नेताओं का विरोध नहीं है। हाईकमान के विश्वस्त माने जाते हैं। राजनीति जानकार बताते हैं कि उनके खिलाफ एक ही चीज जाती है कि उनकी अपील पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं है। वह एक क्षेत्र के ही नेता हैं। हालांकि वह भूपेश बघेल से चुनाव में पीछे हैं। फिलहाल चुनाव हारने के बाद भी सीएम बन सकते हैं। जैसा पश्चिम बंगाल में हुआ है।
अध्यक्ष पर दांव लगा सकती है बीजेपी
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव सीएम पद के लिए भी दावेदार बन सकते हैं। अरुण साव ओबीसी समाज से आते हैं। सीधे-सरल हैं। आरएसएस से जुड़े हैं। पार्टी के अंदर की गुटबाजी में विश्वास नहीं करते। इन चुनावों के 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी को एक साफ सुथरी छवि वाला ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो हाईकमान के निर्देश को पूरी तरह से अमल में लेकर आए। इसके लिए साव बेहतर व्यक्ति हो सकते हैं। ओबीसी की जिस जाति से वह आते हैं उसकी संख्या छत्तीसगढ़ में ठीक-ठाक है। जातीय समीकरणों का लाभ भी उनके पक्ष में जा सकता है।
नए चेहरे पर दांव लगाने की कोशिश
ब्यूरोक्रेट ओपी चौधरी तब चर्चाओं में आए थे, जब उन्होंने 2018 के चुनावों के पहले नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। चौधरी युवाओं में लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया में बहुत बड़ी फैन फालोइंग है। जिस तरह से महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत युवा चेहरे देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया था। ऐसी सूरत में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी ओपी चौधरी को ही यह जिम्मेदारी सौंप दे। ओपी चौधरी ओबीसी समाज से आते हैं। राजनीति में एक विजन लेकर आए हैं। उनके हिस्से की कमजोरी यह है कि वह पारंपरिक राजनेता नहीं हैं। संगठन को चलाने का अनुभव नहीं है। उम्र भी अपेक्षाकृत राज्य के नेताओं की तुलना में कम है। आठवीं बार विधायक बने बृजमोहन अग्रवाल को इस बार बड़ी जिम्मेदारी मिलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
आदिवासी को भी मिल सकता है मौका
छत्तीसगढ़ में बीजेपी किसी आदिवासी नेता पर भी दांव लगा सकती है। रामविचार नेताम का नाम ऐसी हालत में सबसे ऊपर आ सकता है। इसके अलावा बीजेपी आदिवासी चेहरे विष्णुदेव साय पर भी दांव लगा सकती है। भाजपा यदि चुनाव जीतती है तो वह मुख्यमंत्री चुनने के मामले में चौंका भी सकती है। मुख्यमंत्री चुनते समय केंद्रीय नेतृत्व इस बात का ख्याल रखना चाहेगा कि 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी पिछली बार की तरह इस बार भी चुनावों में प्रदर्शन करना चाहेगी। जिसमें मुख्यमंत्री की कार्यशैली के साथ उसकी जाति भी अहम होगी।