बिलासपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ नान घोटाला केस में फंसे पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। पूर्व महाधिवक्ता को निचली अदालत के बाद अब हाईकोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। इससे अब उनकी गिरफ्तारी की संभावना बढ़ गई है। एसीबी-ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज नई एफआईआर मामले में पूर्व महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी लगाई थी। जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की सिंगल बेंच ने यह निर्णय सुनाया है।
जस्टिस रविंद्र अग्रवाल ने 2 महीने पहले इस केस में फैसला सुरक्षित रखा था, जिस पर गुरुवार को फैसला आया है। बता दें कि पूर्व महाधिवक्ता ने रायपुर की एंटी करप्शन ब्यूरो कोर्ट के फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। रायपुर की एसीबी कोर्ट की जिला सत्र न्यायाधीश निधि शर्मा द्वारा उनकी अग्रिम जमानत याचिका पहले ही खारिज कर दी थी। एसीबी कोर्ट ने पूर्व महाधिवक्ता की अग्रिम जमानत याचिका को अत्यंत गंभीर मामला बताते हुए खारिज किया था।
जमानत के लिए जज से संपर्क की बात
छत्तीसगढ़ नान घोटाला केस में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि छत्तीसगढ़ के नागरिक आपूर्ति निगम (पीडीएस) घोटाले में आरोपी दो वरिष्ठ नौकरशाह आईएएस अनिल कुमार टुटेजा और आलोक शुक्ला अक्टूबर 2019 में जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संपर्क में थे। ईडी ने दावा किया था कि तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा दोनों और न्यायाधीश के बीच संपर्क बनाए हुए थे।
नान घोटाले में इन पर अपराध दर्ज
ईडी ने अदालत में कहा था कि तीनों के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। इसके बाद ईओडब्ल्यू ने छत्तीसगढ़ के नान घोटाले के मामले में आईएएस डॉ. आलोक शुक्ला, आईएएस अनिल टुटेजा, पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा और अन्य पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की धाराओं 7, 7क, 8, और 13(2) के तहत और भारतीय दंड संहिता की धाराओं 182, 211, 193, 195-ए, 166-ए, और 120बी के तहत अपराध दर्ज किए थे।
EOW की एफआईआर में क्या है?
ईओडब्ल्यू की एफआईआर के अनुसार पूर्व आईएएस डॉ. आलोक शुक्ला और आईएएस अनिल टुटेजा ने तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा से पद का दुरुपयोग करते हुए लाभ लिया। इन दोनों अफसरों ने वर्मा को लोक कर्तव्य को गलत तरीके से करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद तीनों ने मिलकर ईओडब्ल्यू में काम करने वाले उच्चाधिकारियों से प्रक्रियात्मक दस्तावेज और विभागीय जानकारी में बदलाव करवाया, ताकि नागरिक आपूर्ति निगम के खिलाफ 2015 में दर्ज एक मामले में अपने पक्ष में जवाब तैयार किया जा सके और उन्हें अग्रिम जमानत मिल सके।