रायपुर. न्यूजअप इंडिया
भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशी तय कर दिए हैं। भाजपा के टिकट वितरण को सियासी जानकार बेहतर दांव मान रहे हैं। विजय बघेल और संतोष पाण्डेय को रिपीट करना, सरोज पांडे को कोरबा से उम्मीदवार बनाना, दो प्रत्याशियों को सरपंच से उठाकर सीधे एमपी का टिकट देना, आठ बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर से टिकट देना… यह ऐसे पैतरें है, जिसने कांग्रेस से मनोवैज्ञानिक बढ़त को पुख्ता बनाते हैं। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता, धरातल पर विकास और आम जनता के जीवन में खुशहाली दृष्टिगोचर होना चाहिए।
चुनाव की दृष्टि से देखें तो छत्तीसगढ़ की आम जनता को जीवन की बुनियादी सहुलियतों के साथ केंद्र में मजबूत और विकासपरक सरकार चाहिए। मोदी ने विकसित भारत का संकल्प दिखाकर आम राजनैतिक जनभावना को बदला है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि आम मतदाता मोदी सरकार से प्रसन्न और संतुष्ट है। यह भी कटु सत्य है कि छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसदों का परफार्मेंस बेहतर रहा हो। सिर्फ मोदी के नाम के सहारे चुनाव जीते और विकास कुछ भी नहीं कर सके। जननेता का जनता से जुड़ाव भी नहीं रहा, इसलिए अधिकांश सांसदों के टिकट काट दिए गए।
दूसरी ओर कांग्रेस की तैयारी भी पार्टी के अंदर चल रही है। छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों पर तैयारियां मजबूत है। कांग्रेस भले ही विधानसभा चुनाव हार गई हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देगी। पिछले चुनाव में बस्तर और कोरबा सीट पर कांग्रेस को जीत मिली। कांकेर और रायपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी थी। कुछ लोकसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर लाख से नीचे है। यह अलग बात है कि पिछले तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा है, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी है। जनता को ज्यादा वेबकूफ नहीं बनाया जा सकता। ऐसे में अब छत्तीसगढ़ की जनता 2024 में क्या जनादेश देती है, यह चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा।
फील गुड और विकसित भारत का संकल्प
2004 के लोकसभा चुनाव में भारत के मतदाता ने फील गुड की हवा निकाल दी थी। न सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गई, बल्कि दस सालों तक मनमोहन सिंह की सरकार दिल्ली में काबिज रही। तब चुनावी रणनीति के मर्मज्ञ प्रमोद महाजन को इसका जिम्मेदार ठहराया गया, क्योंकि उन्होंने ही “फील गुड” का प्रपंच रचा और भाजपा को ग्रास रूट से उठाकर पांच सितारा कल्चर में पहुंचा दिया। महंगाई, बेरोजगारी और मंदी से परेशान आवाम ने छद्म “फील गुड” के नारे को पसंद नहीं किया और सरकार ही बदल कर रख दिया। इस तरह अटल युग का समापन हो गया।
जन आकांक्षाएं अब भी लक्ष्य से दूर
2014 में भारत की राजनीतिक फलक पर नरेंद्र मोदी की इंट्री हुई। इन दस सालों में भारत ने नई अंगड़ाई ली।
इसके बावजूद इस सच्चाई से इनकार करना भी बेमानी होगा कि विशाल जन आकांक्षाएं लक्ष्य से दूर है। आज भी महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतें मुंह बाएं खड़ी है। अमृतकाल की बात और चहुंओर खुशहाली नहीं आई है। विकसित भारत की संकल्पना पर बहुत से लोग सवाल उठाते हैं।
स्थानीय मुद्दे हाशिए पर चले गए
एक बड़ी आबादी का कहना है कि मोदी सरकार ने 2024 तक कई वायदे पूरे करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन वे आज भी अधूरे हैं। कालाधन अब तक वापस नहीं आया। किसानों की आय डबल करने और दो करोड़ नई नौकरी के प्रश्न का जवाब कोई नहीं देता। फिर भी हर घर में शौचालय, सभी घरों तक पेयजल और LPG देने के साथ साथ देश ने नई वैश्विक पहचान भी बनाई। धारा 370 और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद छत्तीसगढ़ के स्थानीय मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं। अब 2024 का चुनाव परिणाम स्पष्ट करेगा कि तीसरी बार मोदी को कितना जनसमर्थन हासिल किया है।