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Tuesday, December 3, 2024

पंजे की पकड़ होगी मजबूत या खिलेगा कमल, कहीं निर्दलीय न पड़ जाए भारी, बालोद में क्या बागी बढ़ाएंगे भाजपा-कांग्रेस की टेंशन, जानिए सियासी समीकरण

प्रदीप चोपड़ा. बालोद
बालोद जिले की तीन विधानसभा सीट में नामांकन प्रक्रिया और नाम वापसी के बाद चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए गए। बालोद में 14 प्रत्याशी भाग्य आजमाएंगे। वहीं डौंडीलोहारा में 4 उम्मीदवार और गुंडरदेही विधानसभा 13 प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। चुनाव चिन्ह मिलते ही अब प्रचार में तेजी आएगी। डौंडीलोहारा में सबसे कब 4 प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। बालोद जिले के तीन विधानसभा के सियासी रण में कुल 31 उम्मीदवार मैदान में हैं। सभी की एक-दूसरे को पटखनी देने की रणनीति है। कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ रही जिला पंचायत सदस्य मीना साहू को कांच का गिलास चुनाव चिन्ह मिला है। राजनीतिक जानकार संजारी बालोद और गुंडरदेही विधानसभा में त्रिकोणीय और डौंडीलोहारा आमने-सामने की टक्कर मान रहे हैं। वहीं मतदान के लिए 15 दिनों का समय है, लेकिन मतदाताओं का मूड एकदम खामोश है। ऐसे में बालोद में पंजे की पकड़ मजबूत होगी या कमल खिलेगा, कहीं निर्दलीय राष्ट्रीय दलों पर भारी न पड़ जाए…।

बालोद विधानसभा में तीन प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी आम आदमी पार्टी से चोवेन्द्र कुमार साहू, भारतीय जनता पार्टी से राकेश यादव और कांग्रेस से संगीता सिन्हा मैदान में हैं। गौकरण गंगवार, चंद्रभान साहू, पुनेश्वर कुमार देवांगन, मनोज कुमार साहू, विनोद कुमार नागवंशी के अलावा 6 अन्य निर्दलीय प्रत्याशी भी है, जिसमें कमलकांत साहू, धनंजय दिल्ली वार, भगवती साहू, मीना सत्येंद्र साहू, रविंद्र कुमार मौर्य, शबनम रानी गौर शामिल है। इसके अलावा गुंडरदेही में बसपा से अशोक आडिल, कांग्रेस से कुंवर सिंह निषाद, जसवंत सिंहा आम आदमी पार्टी, राजेंद्र राय जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और वीरेंद्र साहू भारतीय जनता पार्टी से हैं। डौंडीलोहारा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस से अनिला भेड़िया, भाजपा से देवलाल ठाकुर, गिरवर सिंह ठाकुर और ईश्वर सिंह ठाकुर भी चुनाव में भाग्य आजमा रहे हैं

दो प्रमुख नेत्रियों ने क्यों छोड़ा हाथ का साथ…?
बालोद विधानसभा क्षेत्र के बीते चुनाव का आंकड़ों को देखें तो इस बार कांग्रेस के लिए बागी चुनौती बन रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में विधायक संगीता सिन्हा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली दो जिला पंचायत सदस्य इस बार साथ नहीं हैं। दोनों ही जिला पंचायत सदस्य पिछली बार संगीता सिन्हा को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। जीत के मतों में लगभग आधे मत इनके क्षेत्र से कांग्रेस को मिले थे। अब देखना यह है कि दो प्रमुख नेत्रियों के हाथ के साथ नहीं रहने पर संगीता सिन्हा कितना वोट ले पाती हैं। वहीं अपने क्षेत्र में विधायक प्रत्याशी के रूप में उतरी जिला पंचायत सदस्य मीना साहू अपने पुराने मतों में से कितने को अपने पक्ष में कर पातीं हैं। दूसरी ओर आंकड़ों के प्रत्यक्ष होने के बाद भी संगठन के नेताओं का कहना कि निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

संगीता सिन्हा को 27488 मतों से जीता था चुनाव
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहा है, लोगों में जिज्ञासा भी बढ़ती जा रही है। लोग पुराने आंकड़ों को भी याद कर रहे हैं। साथ ही अब प्रत्याशियों के बीच क्या स्थिति बन सकती है। इसको लेकर भी आपस में चर्चा कर रहे हैं। बालोद विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार के आंकड़ों को देखें तो कांग्रेस प्रत्याशी संगीता सिन्हा को 27488 मतों के अंतर से जीत मिली थी। इसमें 14000 वोट की लीड गुरुर क्षेत्र से ही मिली थी। इसमें 13 हजार वोट की लीड जिला पंचायत सदस्य मीना साहू और ललिता पीमन साहू के क्षेत्र से मिलने की बात कही जा रही है। आंकड़ों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि इस बार गुरुर क्षेत्र से कांग्रेस की प्रत्याशी संगीता सिन्हा को कितना अंतर पड़ सकता है। क्योंकि इस बार 13000 की लीड दिलाने वाली दोनों जिला पंचायत सदस्य संगीता सिन्हा के साथ छोड़कर चुनाव लड़ रही है।

बालोद विधानसभा का भौगोलिक दृश्य भी समझें
संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक रूप से दो मुख्य क्षेत्र में बंटा है। एक बालोद क्षेत्र और दूसरा गुरुर क्षेत्र है। दोनों ही क्षेत्र में जनपद मुख्यालय हैं। अभी तक के चुनाव में दोनों क्षेत्र परिणाम देने में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं। गुरुर क्षेत्र से प्रत्याशी होने पर गुरुर क्षेत्र का लाभ मिलता है। वहीं बालोद क्षेत्र के प्रत्याशी खड़े होने पर गुरुर क्षेत्र से कोई खास लाभ नहीं मिलता। इस बार का चुनावी गणित भी इसी क्षेत्रवाद में फंसा दिख रहा है। गुरुर क्षेत्र से कांग्रेस की संगीता सिन्हा इस बार भी कांग्रेस से प्रत्याशी हैं। वहीं इसी क्षेत्र से ही कांग्रेस से बागी होकर जिला पंचायत सदस्य मीना साहू निर्दलीय प्रत्याशी हैं, जबकि भाजपा प्रत्याशी राकेश यादव बालोद क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भैयाराम सिन्हा और संगीता सिन्हा को गुरूर क्षेत्र से होने का लाभ मिला था, लेकिन इस बार इसी क्षेत्र से मीना साहू के द्वारा चुनावी मैदान में निर्दलीय उतरने से संगीता सिन्हा का सियासी गणित उलझ सकता है।

गुरुर क्षेत्र से दो प्रत्याशी, राकेश को मिल फायदा
चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि गुरुर क्षेत्र से दो प्रमुख प्रत्याशी के लड़ने से इस ताने-बाने का फायदा राकेश यादव को मिल सकता है, लेकिन इसके लिए राकेश यादव को बालोद क्षेत्र में एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा। माना जा रहा है कि संगीता सिन्हा और मीना साहू दोनों का ध्यान पूरी तरह से गुरुर क्षेत्र में होगा। ऐसे में बालोद क्षेत्र में राकेश अपना पैर जमा सकते हैं। हालांकि आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में राकेश को अपनी पैठ जमाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। कांग्रेस प्रत्याशी को प्रदेश में कर्जमाफी की घोषणा, 20 क्विंटल धान खरीदी का लाभ भी मिल सकता है।

सरपंचों की नाराजगी से परिणाम पर असर
बता दें कि बालोद विधानसभा क्षेत्र के अनेक सरपंच वर्तमान विधायक से नाराज हैं। यह बात मीना साहू की नामांकन रैली में सभा के दौरान भी सामने आई। कई सरपंचों ने अपनी परेशानी बताई और विधायक के खिलाफ खुलकर बोला। मीना साहू को साथ देने की बात भी सार्वजनिक रूप से कही गई। यहां तक नाराज सरपंच संघ के जिला अध्यक्ष लेखक चतुर्वेदी ने भी नामांकन पत्र लिया था, लेकिन मीना साहू का समर्थन करते हुए उन्होंने नामांकन जमा नहीं किया। उन्होंने मीना साहू की नामांकन रैली के दौरान अपने उद्बोधन में विधायक के खिलाफ जमकर नाराजगी निकाली।

सरपंच से जिला पंचायत सदस्य तक राजनीति
बता दें कि मीना सत्येंद्र साहू इस पंचवर्षीय कार्यकाल के अलावा पिछले पंचवर्षीय कार्यकाल में भी जिला पंचायत सदस्य रहीं हैं। इसके अलावा वे दो बार अपने ग्राम पंचायत की सरपंच भी रही हैं। पिछले विधानसभा के पहले भी विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने कांग्रेस को बढ़त दिलाने में कामयाबी हासिल की थी। अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने के कारण उनका राजनीतिक कद भी लगातार बढ़ता रहा है। यही वजह है कि ललिता पीमन साहू और मीना साहू के क्षेत्र में निर्दलीय मीना साहू को लाभ भी मिल सकता है।

गुण्डरदेही में भी त्रिकोणीय संघर्ष के आसार
गुण्डरदेही विधानसभा में भाजपा, कांग्रेस के अलावा जेसीसीजे, हमर राज पार्टी, जोहार पार्टी आदि से त्रिकोणीय संघर्ष के आसार नजर आ रहे हैं। बड़ी पार्टियों से नाराज होकर चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय भी वोट काटेंगे। छत्तीसगढ़ियावाद और छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान का मुद्दा भी राष्ट्रीय पार्टियों पर असर डालेगा। एक तरफ अऊ नई सहिबो बदल के रहिबो का नारा है तो दूसरी ओर कर्जमाफी का बड़ा चुनावी झुनझुना है। इस विधानसभा चुनाव में अशोक आडिल, कुंवर सिंह निषाद, जसवंत सिन्हा, राजेन्द्र राय, विरेन्द्र साहू, तोमन लाल साहू, मुरलीधर साहू, यशवंत बेलचंदन, इन्द्र कुमार डाहरे, कल्पना देवी, दादूराम साहू, दौलत राम कोसरे, रमन कुमार साहू चुनावी मैदान में हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों का दमखम राष्ट्रीय पार्टियों के परिणामों को प्रभावित करता है। बहरहाल, तीनों विधानसभा में किसका पलड़ा भारी पड़ेगा यह आने वाले समय बताएगा।

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