रायपुर। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दिसबर-2023 में विधानसभा चुनाव होना है। हिन्दी पट्टी के इन तीन राज्यों में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा की शिवराज सिंह चौहान की सरकार है। इन तीनों ही राज्यों में यही दोनों दल बड़े खिलाड़ी हैं, लेकिन तीनों राज्यों में 9 ऐसे छोटे दल हैं, जो दोनों ही बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ने को आतुर हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अगर दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने छोटे दलों को नहीं साधा तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्षेत्रीय दलों ने चुनावी समर में ताल ठोकने पूरी तैयार कर ली है। इन क्षेत्रीय दलों की नजर SC-ST वोटरों पर है। क्षेत्रीय दल भाजपा-कांग्रेस के समीकरण में बड़ी सेंध लगने को आतुर है।
छत्तीसगढ़ का सियासी समीकरण
छत्तीसगढ़ में मुख्य लड़ाई आदिवासी वोट बैंक और सीटों की है। राज्य की 90 सीटों में से 29 सीटें एसटी कैटगरी के लिए आरक्षित हैं, जबकि अन्य 20 सीटें पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCCJ) ने 2018 का विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा था और कुल 11% वोट परसेंट के साथ 7 सीटें जीतीं थी। अब जेसीसीजे के संस्थापक अजीत जोगी के निधन के बाद पार्टी का पतन हो रहा है। इस बीच, अनुभवी आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम द्वारा स्थापित पार्टी (हमर राज) तेजी से अपना विस्तार कर रहा है। नेताम बस्तर क्षेत्र से आते हैं।
अरविंद नेताम बसपा और सीपीआई (एम) के साथ गठबंधन कर 50 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। बसपा का राज्यभर में दलित वोटों के एक वर्ग पर खासा प्रभाव मावा जाता है। छत्तीसगढ़ में बसपा ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में सबसे पहले प्रत्याशियों की घोषणा की है। वहीं गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) ने पाली तानाखार और भरतपुर सोनहत सीट पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। इस क्षेत्र में गोंगपा का वोटिंग प्रतिशत हर बार के चुनाव में बढ़ता गया है। इस बार प्रत्याशी जीत का दावा कर रहे हैं। पंजाब और दिल्ली जीतने के बाद आम आदमी पार्टी भी इस बार छत्तीसगढ़ में चुनाव को लेकर उत्साहित है। इस बार राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय दलों से जबर्दस्त टक्कर मिलने वाली है।
मध्य प्रदेश का राजनीतिक गणित
मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। इनमें से 47 अनुसूचित जनजाति और 35 अनुसूचित जाते के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों के अलावा 41 और सामान्य सीटें हैं, जहां SC/ST वोटर हार-जीत तय करते हैं। यानी कुल 123 सीटों पर तगड़ा खेल होने वाला है, क्योंकि इन सीटों पर तीन क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी और पकड़ अच्छी मानी जाती है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे बुंदेलखंड क्षेत्र में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी एक प्रमुख सियासी खिलाड़ी है। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में दलित (SC) मतदाताओं पर बसपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है। इसी तरह महाकोशल क्षेत्र की कई सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) की मजबूत पकड़ मानी जाती है। हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन क्षेत्रीय दलों की खींचतान की वजह से मध्य प्रदेश में भाजपा को फायदा हो सकता है।
राजस्थान में क्या हिसाब-किताब
राजस्थान में तीन क्षेत्रीय दल सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) की स्थापना पूर्व भाजपा नेता और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने की है। वह तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एनडीए से बाहर हो गए थे। उनका जाटों के बीच अच्छा खासा प्रभाव है। इसके अलावा, जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली आरएलडी भी एक सियासी खिलाड़ी है, जिसने पिछली बार एक विधानसभा सीट जीती थी। आरएलडी का यूपी से सटी सीमा खासकर भरतपुर, धौलपुर और अलवर के इलाकों में जाट वोटरों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा भी राजस्थान में दोनों बड़े दलों के लिए सियासी शत्रु है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कुल चार फीसदी वोट बैंक पर कब्जा जमाते हुए छह सीटें जीती थीं। बाद में बसपा के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी ताल ठोक रही है।