RAIPUR. न्यूजअप इंडिया.कॉम
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला लेवी स्कैम में आरोपी निलंबित आईएएस रानू साहू, निलंबित आईएएस समीर विश्नोई, कारोबारी सूर्यकांत तिवारी और मुख्यमंत्री सचिवालय की निलंबित उप सचिव सौम्या चौरसिया के लिए राहत भरी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी है, लेकिन इन आरोपियों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध शाखा (EOW) में दर्ज अन्य मामलों की वजह से जेल में ही रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी जेल में रहेंगे। इन लोगों पर डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड (DFM) और मनी लॉड्रिंग जैसे मामले दर्ज है। राज्य की एजेंसी एसीबी-ईओडब्ल्यू भी मामले की जांच कर रही है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कोल लेवी स्कैम का खुलासा किया था। 25 रुपये प्रति टन के हिसाब से कोयला पर लेवी वसूल की जाती थी। इस मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा और कोल कारोबारी अभी जेल में बंद है। कोयला लेवी मामले में आरोपियों की याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की डबल बेंच ने सुनवाई करने के बाद शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी गई है। कोर्ट ने गवाहों को प्रभावित नहीं करने और छत्तीसगढ़ में रहने पर पाबंदी लगाई है। बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय ने इस स्कैम को 570 करोड़ रुपये का बताया है।
कोयला लेवी मामला क्या है जानिए…
ईडी की जांच में सामने आया कि कुछ लोगों ने राज्य के वरिष्ठ राजनेताओं और नौकरशाहों से मिलीभगत के बाद ऑनलाइन मिलने वाले परमिट को ऑफलाइन कर कोयला ट्रांसपोर्ट करने वालों से अवैध वसूली को अंजाम दिया। जुलाई 2020 से जून 2022 के बीच कोयले के हर टन पर 25 रुपये की अवैध लेवी वसूली गई। 15 जुलाई 2020 को इसके लिए आदेश जारी किया गया था। खनिज विभाग के तत्कालीन संचालक आईएएस समीर बिश्रोई ने आदेश जारी किया था। यह परमिट कोल परिवहन में लगे कोल व्यापारियों को दिया जाता था। पूरे मामले का मास्टरमाइंड और किंगपिन कोल व्यापारी सूर्यकांत तिवारी को माना गया है।
रिश्वत और चुनाव में खर्च हुई रकम
प्रवर्तन निदेशालय की जांच में यह सामने आया है कि कोल व्यापारी पैसे देता था, तभी उसे खनिज विभाग से पीट और परिवहन पास जारी होता था। यह रकम 25 रुपये प्रति टन के हिसाब से सूर्यकांत के कर्मचारियों के पास जमा होती थी। इस तरह से स्कैम कर कुल 570 करोड़ रुपये की वसूली की गई। लेवी वसूली से मिली राशि को प्रदेश के सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं को रिश्वत देने में खर्च किया गया। साथ ही चुनावी खर्चों के लिए भी इस अवैध राशि का इस्तेमाल किया गया। आरोपियों ने इससे कई चल-अचल संपतियों को खरीदा है। ईडी ने अफसरों, कारोबारियों की करोड़ों की संपत्ति को अटैच भी किया है।