रायपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि दुर्ग जिले के चार दिग्गज नेता दूसरे जिलों में जाकर लोकसभा का चुनाव लड़े और चारों को हार का सामना करना पड़ा। इनमें कांग्रेस के तीन नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और विधायक देवेंद्र यादव के साथ भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद सरोज पांडेय हैं। चुनावी परिणामों से लगता है कि जनता भी अब क्षेत्रवाद पर भरोसा करने लगी है यानी बाहरी प्रत्याशी अब नहीं चलेगा। जबरिया थोपा गया तो निपटा देंगे।
लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा ने जब अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन किया, तब कांग्रेस ने इस बार दुर्ग जिले के नेताओं पर ज्यादा भरोसा जताया। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पार्टी ने राजनांदगांव से प्रत्याशी बनाया। वहीं ताम्रध्वज साहू को महासमुंद से मैदान पर उतारा। भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से लड़ाया गया। इधर भाजपा ने दुर्ग से भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सांसद सरोज पांडेय को कोरबा से मैदान पर उतारने का काम किया। प्रत्याशियों की घोषणा के साथ विरोध भी हुआ। कईयों ने सामने विरोध किया तो कईयों ने पीठ पीछे बड़ा खाई बना दिया। नतीजा हार के रूप में सामने आया।
जनता ने किसी को नहीं किया स्वीकार
दुर्ग जिले के जिन नेताओं को दूसरे जिलों में प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा गया, उन सबको वहां की जनता ने सिरे से नकार दिया। जब नतीजे देर शाम तक सामने आए तो इसमें सभी को हार का सामना करना पड़ा। राजनांदगांव से भूपेश बघेल को भाजपा के संतोष पांडेय से ने हराया। महासमुंद में ताम्रध्वज साहू को भाजपा की रूपकुमारी चौधरी से मात मिली। बिलासपुर में देवेंद्र यादव को भाजपा के तोखन साहू ने धूल चटाई तो वहीं भाजपा नेत्री सरोज पांडेय को कोरबा में कांग्रेस की ज्योत्सना महंत से करारी शिकस्त मिली। सभी को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
पूर्व कैबिनेट मंत्री शिव डहरिया भी हारे
दूसरे जिलों में चुनाव लड़ने वालों में एक नाम पूर्व मंत्री शिव डहरिया का भी है। वे रायपुर जिले के आरंग से ताल्लुक रखते हैं। रायपुर की जगह उन्हें जांजगीर-चांपा से कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार बनाया। उनको भाजपा प्रत्याशी कमलेश जांगड़े ने 60 हजार से ज्यादा के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। इस तरह से देखें तो कांग्रेस और भाजपा के पांच नेता दूसरे जिलों में चुनाव लड़े और सभी को उन जिलों की जनता ने नकार दिया। यानी इस लोकसभा में जनता ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब पैराशूट प्रत्याशी नहीं चलेगा। अगली बार चुनाव हुए तो स्थानीय नेता ही मान्य होंगे।