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Thursday, July 25, 2024

विवेकानंद स्मारक शिला, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया 3 दिन ध्यान… आप भी जानिए उसके बारे में सब कुछ

Vivekananda Memorial Stone. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले तीन दिनों से कन्याकुमारी में ध्यान करने विवेकानंद स्मारक शिला पहुंचे हुए हैं। 3 दिनों के ध्यान के लिए प्रधानमंत्री ने जिस स्थान का चयन किया उसके पीछे के इतिहास और राजनीतिक महत्वता क्या है? प्रधानमंत्री गुरुवार शाम जब कन्याकुमारी पहुंचे थे तो सबसे पहले उन्होंने भगवती देवी अम्मन मंदिर में दर्शन-पूजन किया। पूजा के दौरान मोदी ने सफेद मुंडु (दक्षिण भारत का एक परिधान) और शॉल पहना था। पुजारियों ने उनसे विशेष आरती कराई। प्रसाद, शॉल और देवी की तस्वीर दी।

शुक्रवार को ध्यान के दूसरे उनकी ध्यान की तस्वीरें सामने आईं थीं। वे भगवा चोला, हाथ में रुद्राक्ष की माला और माथे पर तिलक लगाए दिखे थे। सुबह उन्होंने सूर्य को अर्घ्य दिया। मंदिर की परिक्रमा की और ध्‍यान मुद्रा में बैठे। शनिवार 1 जून को प्रधानमंत्री विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ध्यान से बाहर आए। आज की तस्वीरों में मोदी रुद्राक्ष की माला जपते, ध्यान मंडपम के कॉरिडोर में बैठे और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को नमन करते दिखाई दिए।

विवेकानंद स्मारक शिला का इतिहास
विवेकानन्द स्मारक शिला (Vivekananda Rock Memorial) भारत के तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है। इसे भूमि-तट से लगभग 500 मीटर अंदर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के उपर निर्मित किया गया है। एकनाथ रानडे ने विवेकानंद शिला पर विवेकानंद स्मारक मंदिर बनाने में विशेष कार्य किया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह थे।

गौरतलब है कि 131 साल पहले जब स्वामी विवेकानंद 1892 में कन्याकुमारी आए थे। तब उन्होंने भी समुद्र की शिला पर ध्यान लगाने से पहले इसी मंदिर में भक्तिपाठ किया था। सन 1963 को विवेकानंद जन्मशताब्दी समारोह में तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम ‘विवेकानन्द शिला’ रखना चाहिए और उस पर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित कर ली।

स्वामी चिद्वानानंद इस कार्य में जुट गए, लेकिन इस मांग से तमिलनाडु का कैथोलिक चर्च घबरा उठा और डरने लगा कहीं यह काम हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना न भर दे। मिशन की राह में यह प्रस्ताव चर्च को बड़ा रोड़ा लगा। चर्च ने उस शिला को विवेकानन्द शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए।

धर्मांतरित ईसाई नाविकों ने हिन्दुओं को समुद्र तट से शिला तक ले जाने से मना कर दिया। इस स्थिति का सामना करने के लिए संघ के स्वयंसेवक बालन और लक्ष्मण कन्याकुमारी के समुद्र में कूदकर तैरते हुए शिला तक पहुंच गये। एक रात रहस्यमयी तरीके से क्रॉस गायब हो गये। पूरे कन्याकुमारी जिले में संघर्ष की तनाव भरी स्थिति पैदा हो गई और राज्य कांग्रेस सरकार ने धारा 144 लागू कर दी।

दत्ता जी दिदोलकर की प्रेरणा से मन्मथ पद्मनाभन की अध्यक्षता में अखिल भारतीय विवेकानन्द शिला स्मारक समिति का गठन हुआ और घोषणा हुई कि 12 जनवरी, 1963 से आरम्भ होने वाले स्वामी विवेकानन्द जन्म शताब्दी वर्ष की पूर्णाहुति होने तक वे शिला पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कर देंगे। समिति ने 17 जनवरी 1963 को शिला पर एक प्रस्तर पट्टी स्थापित कर दी, लेकिन 16 मई, 1963 को इस पट्टिका को रात के अंधेरे में ईसाइयों ने तोड़कर समुद्र में फेंक दिया। स्थिति फिर बहुत तनावपूर्ण हो गई। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक माधव सदाशिव गोवलकर ने सरकार्यवाह एकनाथ रानडे जी को यह कार्य सौंपा।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम् विवेकानंद स्मारक के निर्माण पक्ष में थे, लेकिन केंद्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर रोड़े अटका रहे थे। कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर एकनाथ रानाडे ने मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया। रानाडे ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता विचारधारा” में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुंच गए।

जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।” कांग्रेस हो या समाजवादी, साम्यवादी हो या द्रविड़ नेता सभी ने एक स्वर में हामी भरी। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानन्द महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और इसका औपचारिक उद्घाटन 2 सितम्बर 1970 को भारत के राष्ट्रपति वीवी गिरी ने किया। उद्घाटन समारोह लगभग 2 महीने तक चला, जिसमें भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी भाग लिया था।

2019 में भी किया था ध्यान
प्रधानमंत्री ने 2019 के लोकसभा चुनाव के भी अंतिम दौर में इसी प्रकार केदारनाथ जाकर ध्यान किया था और तब के चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को भारी बहुमत प्राप्त हुआ था। देखना दिलचस्प होगा कि 4 जून को नतीजे क्या होंगे।

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