रायपुर। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित क्षेत्रीय पार्टियां दमखम दिखा रही है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच राजनीतिक सभाओं का दौर शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ के लिए 21 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, दूसरी सूची का इंतजार है। वहीं मध्य प्रदेश में 39 सीटों लिए दूसरी सूची भी जारी की गई है। मध्य प्रदेश के दूसरी सूची में 3 केंद्रीय मंत्रियों सहित 7 सांसदों को प्रत्याशी बनाया गया है। छत्तीसगढ़ में भी कई सांसदों को टिकट देकर चुनाव लड़ाने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति मध्य प्रदेश से अलग होगी। इसकी एक बड़ी वजह दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार का होना है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने पहली सूची में एक सांसद विजय बघेल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मैदान में उतारा है। यह सीएम भूपेश को उसके विधानसभा में घेरने भाजपा की एक रणनीति है। छत्तीसगढ़ में अभी कांग्रेस की मजबूत सरकार है। वहीं राजस्थान में भी कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार काबित है। दोनों राज्यों की जरूरत और रणनीति भी अलग-अलग है। दरअसल, भाजपा के लिए सबसे ज्यादा अहम छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान है। हिन्दी पट्टी के ये तीनों राज्य भाजपा के गढ़ हैं और लोकसभा की 75 में से पार्टी के पास 72 सीटें हैं। ऐसे में BJP इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही। रणनीति के तहत भाजपा हारी हुई सीटों पर ज्यादा फोकस कर रही है। इधर गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रायपुर आ रहे हैं। वे उम्मीदवारों के नामों पर मंत्रणा करेंगे और इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व को सूची भेज दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अलग-अलग चुनौती
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी नई रणनीति के तहत बड़े नेताओं को उतार रही है, लेकिन हर राज्य की जरूरत और रणनीति अलग है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी बड़े नेता उतारे जाएंगे, लेकिन मध्य प्रदेश जैसा ही हो यह जरूरी नहीं है। मध्य प्रदेश में भाजपा बीते लगभग दो दशक से सत्ता में है। यहां सत्ता बचाने की चुनौती है वहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता हासिल करने की। मध्य प्रदेश में भाजपा ने हाल में अपने अधिकांश बड़े नेताओं को विधानसभा के चुनाव मैदान में उतार दिया है, जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री, चार सांसद और एक राष्ट्रीय महासचिव शामिल हैं। छत्तीसगढ़ का परिदृश्य ऐसा नहीं है। लोकसभा चुनाव में जनता मोदी के साथ है, लेकिन विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा से मुंह फेर लिया। पिछले विधानसभा चुनाव में धान और बोनस के मुद्दे ने कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाया।
छत्तीसगढ़ में दो सांसदों को टिकट दे सकती है पार्टी
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में है। ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल अलग-अलग है। राजस्थान में तो हर पांच साल में सत्ता बदल रही है। ऐसे में बड़े नेताओं को कहां कितना दांव पर लगाना है, वहां की परिस्थिति पर निर्भर करेगा। छत्तीसगढ़ में भाजपा पहले ही एक सांसद विजय बघेल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सीट पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष सांसद अरुण साव, केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह और राज्यसभा सांसद सरोज पांडे को पार्टी चुनाव लड़ा सकती है।
राजस्थान में इन सांसदों को मिल सकता है मौका
राजस्थान में भाजपा केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल को चुनाव मैदान में उतार सकती है, लेकिन राज्य में वसुंधरा राजे और शेखावत में जिस तरह के समीकरण हैं, उसे भी देखना होगा। पार्टी शायद ही पहले से नाराज चल रही वसुंधरा राजे को और ज्यादा नाराज करे। सूत्रों के मुताबिक पार्टी राजस्थान में सांसद भागीरथ चौधरी को चुनाव लड़ा सकती है। बाद में उनकी लोकसभा सीट पर कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा को उतारा जा सकता है। केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के साथ सांसद किरोड़ीमल मीणा और सुखबीर सिंह जौनपुरिया का नाम भी चुनाव लड़ने वालों में है।
छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में ऐसी भी चर्चा
मध्य प्रदेश में भाजपा की सूची जारी होने के बाद छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में ऐसी भी चर्चा है कि भाजपा अपने कुछ सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार सकती है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, राजनांदगांव के सांसद संतोष पांडे, महासमुंद के सांसद चुन्नीलाल साहू और रायगढ़ की सांसद गोमती साय का नाम शामिल है। ऐसा इसलिए भी कि छत्तीसगढ़ भाजपा की पहली सूची में दुर्ग के सांसद विजय बघेल को प्रत्याशी बनाया गया है। मध्य प्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में कुछ विधानसभा सीटों में भाजपा इस तरह का प्रयोग कर सकती है।