रायपुर. न्यूजअप इंडिया
छत्तीसगढ़ में एक ओर त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर सियासी गहमा-गहमी का माहौल है तो दूसरी ओर एक गांव ने बिना चुनाव कराए अपने गांव का मुखिया चुन लिया। ऐसा कर ग्राम पंचायत रनई ने लोकतंत्र की मिसाल पेश की है। कोरिया जिले के जनपद पंचायत बैकुंठपुर अंतर्गत रनई गांव ने एक बार फिर निर्विरोध सरपंच और 15 पंचों का चयन कर अपनी ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखा है। देश की आजादी के बाद से इस गांव में आज तक कभी चुनाव नहीं हुआ है।
पंचायत चुनाव में कई जगहों से हिंसा की खबरें आते हैं, लेकिन रनई में आपसी सहमति और सौहार्द से जनप्रतिनिधियों का चयन होता है। यहां बिना किसी मतदान के आरक्षण के हिसाब से सरपंच और पंच का चुनाव किया गया। इस परंपरा को बनाए रखने में रनई जमींदार और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव योगेश शुक्ला की बड़ी भूमिका रही। उनकी पहल से गांव में निर्विरोध चुनाव की परंपरा अब भी बनी हुई है। कोरिया जिले के ग्राम पंचायत रनई की जनसंख्या 1825 हैं, जिसमें करीब 1500 मतदाता है। निर्विरोध चुनाव के लेकर बैकुंठपुर विधायक भैयालाल राजवाड़े ने कहा कि रनई गांव में आपसी सहमति से निर्विरोध चुनाव होता है। यह अच्छी बात है। सरकार की भी मंशा है, जहां पर चुनाव नहीं होता, निर्विरोध होता है, वहां इनाम दिया जाता है। इससे पंचायत संचालन में किसी प्रकार का राजनीतिक तनाव नहीं रहता।
निर्विरोध चुनाव का ऐतिहासिक रिकॉर्ड
रनई के ग्रामीणों ने एक बार फिर मतदान की आवश्यकता ही नहीं पड़ने दी। आपसी सहमति से सरपंच और 15 पंचों का चयन कर लिया। यह सिलसिला आजादी के बाद से लगातार जारी है और एक मिसाल बन चुका है। निर्विरोध चयन की घोषणा के बाद गांव में उत्सव का माहौल बन गया। इसे ग्रामीणों ने आपसी भाईचारे और सामंजस्य की जीत बताया।
दूसरे पंचायतों के लिए बना मिसाल
बैकुंठपुर जनपद पंचायत का रनई ग्राम पंचायत लोकतांत्रिक परंपरा में प्रदेश के दूसरे गांवों के लिए भी प्रेरणादायक और मिसाल है। यहां चुनावी प्रतिस्पर्धा की जगह आपसी सहमति से नेतृत्व तय किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस परंपरा से पंचायत में शांति बनी रहती है और विकास कार्य बिना किसी राजनीतिक विवाद के संचालित होते हैं।
ये चुने गए निर्विरोध सरपंच-पंच
रनई में इस बार बबीता ठकुरिया को सर्वसम्मति से गांव का मुखिया यानी सरपंच चुन लिया गया। वहीं गीता शुक्ला उप सरपंच चुनी गई। पंचों में यशोदा ठकुरिया, आशा दुबे, सुमित्रा पटेल, लता विश्वकर्मा, वेदमति साहू, ज्योति सिंह, हीरामनी पंडो, राधा साहू, सोनकुंवर कोल, शशि कोल, लीलाकोल, श्यामवती कोल, चंद्रमनी और सोनकुवंर कोल शामिल हैं।
पूर्वजों के समय से कायम है परंपरा
ग्रामीणों ने बताया कि रनई की इस परंपरा को बनाए रखने में हमारे पूर्वजों का अहम योगदान रहा है, जिसे आज भी कायम हम लोग रखे हुए हैं। हर बार बिना किसी विवाद के जनप्रतिनिधियों का चयन करते हैं। इस अनूठी परंपरा ने एक बार फिर रिकॉर्ड बना दिया है। यहां दशकों से बिना किसी चुनावी प्रतिस्पर्धा के पंचायत चुनाव होता आ रहा है।