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Tuesday, December 3, 2024

छत्तीसगढ़ में इनके पूर्वजों ने 150 साल पहले बता दिया था कि कब होगी अयोध्या में भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा

  • सक्ती जिले में जैजैपुर में रामनामी मेले में आये रामनामियों ने चर्चा में बताया, कहा अयोध्या में राम मंदिर बनने से बहुत खुशी
  • जैसे लोग मंदिर में जूते छोड़ देते हैं वैसे ही शरीर को राम का मंदिर मानते हैं रामनामी, इसलिए माँस-मदिरा का सेवन नहीं करते

रायपुर. न्यूजअप इंडिया
150 साल पहले हमारे पूर्वजों ने बता दिया था कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी के बीच होगी। 22 जनवरी को श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में हो रही है। उसकी तिथि हमारे पूर्वजों ने पहले ही बता दी थी। हमारा मेला भी इसी तिथि में भरता है और अद्भुत संयोग है कि श्रीराम के भव्य मंदिर में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा इस समय हो रही है। पता नहीं क्या है इस तारीख में जो पंडित बता रहे हैं वही हमारे पूर्वजों ने भी बताई। ये राम ही बताएंगे। यह बात सक्ती जिले के जैजेपुर में चल रहे रामनामी मेला में आये श्री गुलाराम रामनामी ने बताई। गुलाराम और उनके साथी बताते हैं कि पूर्वजों की कही बात पूरा होने से हम लोग बहुत खुश हैं।

रामनामी मेले के बारे में बताते हुए खम्हरिया से आये श्री मनहरण रामनामी ने बताया कि हर साल इसी तिथि में मेले का आयोजन होता है। एक साल महानदी के इस पार और एक बार महानदी के उस पार। मनहरण ने बताया कि 150 साल पहले से हम लोग भजन गाते आये हैं। पहले छोटे भजन गाते थे 15 साल से बड़े भजन की शुरूआत हुई। सरसकेला से आई सेजबना ने बताया कि मैं बचपन से भजन गाती हूँ। 7 साल से राम नाम गोदवाया है। मेरे माता-पिता भी भजन गाते थे। यह चौथी पीढ़ी है जो भजन गा रही है। राम नाम की महिमा अपरंपार है। जिस परिसर में यह सब भजन गा रहे हैं। उस परिसर में भी उन्होंने राम नाम लिखवा लिया है। अपने घर में राम का नाम लिखा है। वस्त्रों में राम का नाम लिखा है। रामनामी राम के नाम के उपासक हैं। रामनामियों ने कहा कि किसी भी रूप में राम को भजो, चाहे गेरुवा पहन कर भजो, चाहे मुंडन कराओ लेकिन भेदभाव न करो। छलकपट न करो। यही उनका संदेश है।

मेला परिसर के दायरे में मांस-मदिरा नहीं
गुलाराम बताते हैं कि मेला परिसर के तीन किमी के दायरे में माँस-मदिरा निषेध है। जैसे लोग मंदिर में जूता छोड़कर जाते हैं। वैसा ही हम मानते हैं कि हमारे हृदय में राम का वास है। हमने शरीर के हर अंग में राम का नाम लिखा है तो हमने यह संकल्प लिया है कि हम अपने शरीर को दूषित नहीं कर सकते। इसलिए माँस-मदिरा से परहेज करते हैं। इसके साथ ही हम छल-कपट से भी दूर रहते हैं। गुलाराम कहते हैं कि राम सभी जाति धर्मों से परे सबके हैं।

सब कुछ अपने राम को समर्पित कर दिया
जैजैपुर में भजन जारी है। रामनामी मनहरण गा रहे हैं। जो राम को भजै सो राम का होई। जब उनको सुनते हैं तो भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी का भजन याद आता है जो भजे हरि को, सोही परम पद पायेगा। रामनामी अपनी हर बात में मानस का कोई दोहा अथवा कबीर का कोई दोहा गाते हैं। उन्होंने बताया कि हमने सब कुछ अपने राम को समर्पित कर दिया है।

राम नाम के हजारों किस्से हैं इनके पास
एक किस्सा बताते हुए मनहरण बताते हैं कि एक बार महानदी में बड़ी बाढ़ आई। इसमें कुछ रामनामी सवार थे और कुछ लोग सामान्य लोग थे। धार बहुत बढ़ गई। नाविक ने कहा कि अब राम नाम याद कर लो, सबका अंत याद आ गया है। फिर राम नाम का भजन गाया। फिर बहाव कम हो गया और सब सुरक्षित तट पर लौटे। ये 1911 की बात हैं। हम सबको यह बताते हैं। इसी दिन से मेला भरना शुरू हुआ।

Grand Ram Temple Will Be Built on This Date, Prophesied by Our Ancestors 150 Years Ago: Ramnamis

Raipur, 21 January 2024. In a remarkable alignment of prophecy and reality, the consecration of the idol of Shri Ram Lalla in the grand temple of Ayodhya is set to take place on January 22, precisely as foretold by our ancestors 150 years ago. Our ancestors predicted that the consecration of the idol in the Shri Ram temple in Ayodhya would take place between the eleventh and thirteenth days of the Shukla Paksha. It’s remarkable that our festival also falls on the same date, and the consecration of Shri Ram Lalla’s idol in the grand temple is coinciding at this time. It is unknown what significance the pundits are attributing to this date, but our ancestors had also mentioned it. Only Lord Rama will reveal the truth, said Shri Gularaam Ramnami, a Ramnami devotee, during Jaijaipur festival. Shri Gularaam and his companions express great joy at the fulfillment of their ancestors’ predictions.

Speaking about the Ramnami Fair, Shri Manharan Ramnaami from Khamhariya mentioned that the fair is annually organized on the same date, alternating between the opposite banks of the Mahanadi river. For 150 years, they have been singing devotional songs, starting with shorter hymns and transitioning to longer ones 15 years ago. Sejwana, from Sarsakela, shared that she has been singing devotional songs since childhood and has been dedicated to chanting the name of Ram for seven years. She belongs to the fourth generation in this tradition, and the timeless glory of Ram’s name is inscribed in their surroundings, homes, and clothes. Ramnaamis, devotees of Lord Ram, emphasize worshiping Ram in any form, be it in saffron robes or with a shaven head, without discrimination or deception. This, they say, is their message.

Within a radius of three kilometers from the fairground, Gularam explains that the consumption of meat and alcohol is prohibited. Just as people leave their shoes outside the temple, they believe that the abode of Ram is within their hearts. With the name of Ram inscribed in every part of their bodies, they have resolved not to defile their bodies. Hence, they refrain from consuming meat and alcohol. Additionally, they distance themselves from deceit and deception. Gularam emphasizes that Ram transcends all castes and religions.

“Ram ko Bhaje So Ram ka Hoyi” – Devotional songs are resonating in Jaijaipur. The Ramnaamis are engrossed in singing, with the belief that one who worships Ram becomes truly his own. Listening to them brings to mind the devotional song of praise of Bharat Ratna Pandit Bhimsen Joshi, “Bhaje Hari Ko, Sohi Param Pad Payega” – Those who worship the Lord will attain the highest state. Ramnaami incorporates verses from the works of Sant Kabir or Manas in their every discourse. They express that they have dedicated everything to their Ram.

They have thousands of stories related to the name of Ram. Narrating one such story, Manharan explains that once there was a massive flood in the Mahanadi River. Some were devotees of Ram, and others were ordinary people. The current became extremely strong. A boatman advised everyone to remember the name of Ram, as it was time to seek divine intervention. Subsequently, they chanted the devotional song of Ram’s name. The flow of the water reduced, and everyone safely returned to the shores. This incident dates back to the year 1911. They share this story with everyone, and it marks the beginning of the tradition of filling the fair from that day onwards.

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