चन्द्रकान्त शुक्ला. रायपुर
देश की राजधानी दिल्ली में बैठकर सियासी पंडित बिना एक भी दिन छत्तीसगढ़ आए नेशनल मीडिया में कांग्रेस की जीत का ऐलान करते रहे। प्रदेश की राजधानी रायपुर के भी तथाकथित बड़े पत्रकारों ने प्रदेश के वास्तविक हालात को जानने की कोशिश किए बगैर ही कांग्रेस को बढ़त बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद इन्हीं सियासी पंडितों के संकेतों को कांग्रेस सच मान बैठी। क्या कवर्धा कांड की सच्चाई से सरकार अवगत नहीं थी? बिरनपुर कांड को इतने हल्के में क्यों लिया गया? नारायणपुर समेत समूचे बस्तर में धर्मांतरण के मसले पर उपजता आक्रोश क्या राजधानी तक नहीं पहुंच रही थी?
पिछले 33 सालों में मुझे ज्यादातर वक्त तक रिजनल की पत्रकारिता करने का सुअवसर मिला है। इस लिहाज से मुझे तो कवर्धा कांड की आंच पूरे प्रदेश को झुलसाती साफ दिखाई दे रही थी। बिरनपुर कांड ने उस आंच को और तेज कर दिया था। सोशल मीडिया के इस जमाने में प्रदेश के सुदूर नारायणपुर की घटना भी मिनटों में प्रदेश के कोने-कोने तक पहुंच जाती है। आम पब्लिक अब राजधानी के अखबारों में छपने वाली लीपा-पोती करती खबरों के भरोसे नहीं रह गई है। कवर्धा कांड के बाद ‘प्रशासनिक आतंक’ का वह ‘नंगा नाच’ जिन शहरवासियों ने झेला… वे 3 दिसंबर की शाम विजय शर्मा की जीत पर जश्नभर नहीं मना रहे थे, जश्न का वीडियो देखकर ऐसा लगता है मानो उन्हें अब किसी तरह की ‘खुली हवा’ में सांस ले सकने की आजादी मिल गई हो। किसी प्रत्याशी की केवल जीत पर ऐसा जश्न… मैंने तो आज तक न देखा, न सुना।
कवर्धा कांड के बाद जिस तरह से बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन प्रदेश में होने लगे, संतों की वाणी सुनने के लिए कैसे लाखों की भीड़ उमड़ने लगी। संतों ने इन धार्मिक आयोजनों में जो संदेश दिए… क्या चुनाव आते-आते प्रदेश की जनता केवल कर्ज माफी और बिजली फ्री… ये फ्री.. वो फ्री के वादों में भूल जाती। नहीं… नहीं महोदय..! प्रदेश की जनता को सब याद था। मैं यह भी नहीं मानता कि, हिंदुत्व की बहती इतनी तेज हवा से सरकार के कर्ताधर्ता अनभिज्ञ रहे हों। बराबर उन तक जानकारी पहुंचती रही होगी, लेकिन ‘माया के मोह’ में उलझे सिपहसालार कहां कड़वी बातें ‘ऊपर’ जाकर बताते हैं। कहीं से छनकर ऐसी बातें पहुंची भी हों तो कहां ‘ऊपर’ के लोग अपने फैसलों में गलतियां स्वीकारते हैं।
छत्तीसगढ़ में चल रहा यह सियासी खेल प्रदेश के कोने-कोने तक सालभर पहले ही पहुंच चुका था। 15 साल तक प्रदेश के मुखिया रहे डा. रमन सिंह इस दबी हुई चिंगारी को भली भांति समझ रहे थे। कवर्धा कांड के सबसे बड़े पीड़ित विजय शर्मा और बिरनपुर कांड में बेटे को खो देने वाले ईश्वर साहू को टिकट मिलने की खबर ने उस दबी हुई चिंगारी को हवा दे दी। बस फिर क्या था… ये वही चिंगारी थी जिसने शोला का रूप धारण कर 7 और 17 नंवबर को EVM मशीनों में ‘आग’ लगा दी।
- साभार- हरिभूमि