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Thursday, October 16, 2025

Chhattisgarh Special: गरीबों के ‘डॉक्टर’ और फिर ‘चाउर वाले बाबा’, CM की कुर्सी पर बैठा और रिकॉर्ड बना डाला… आज भी बेहद लोकप्रिय राजनेता…

संदीप दीवान. रायपुर
छत्तीसगढ़ के उस डॉक्टर की बात… जिसे लोग शनिचर डॉक्टर कहते हैं… बात उस डॉक्टर की… जिसे लोग ‘चाउर वाले बाबा’ के नाम से जानते हैं… बात उस डॉक्टर की… जो ‘मुख्यमंत्री’ की कुर्सी पर बैठा और रिकॉर्ड बना डाला… उस डॉक्टर का नाम है… ‘डॉ. रमन सिंह’ …। छत्‍तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह को आम लोग चाउर (चावल) वाले बाबा के रूप में जानते हैं। देश में धान के कटोरे के रूप में विख्यात छत्तीसगढ़ की गरीब जनता को बहुत मामूली कीमत पर चावल देने के लिए उन्‍हें यह नाम मिला। नया राज्‍य बनने के बाद अजीत प्रमोद जोगी छत्‍तीसगढ़ के पहले मुख्‍यमंत्री बने थे, लेकिन राज्‍य के पहले निर्वाचित मुख्‍यमंत्री का तमगा डॉ. रमन सिंह के नाम दर्ज है। आज डॉ. साहब का जन्मदिन है और छत्तीसगढ़ की इस स्पेशल स्टोरी में हम आपको बताएंगे गांव, गरीब और किसानों के मसीहा के रूप में विख्यात डॉ. रमन सिंह के बारे में…।

15 अक्टूबर, 1952 को जन्में रमन की स्कूली शिक्षा छुईखदान, कवर्धा और राजनांदगांव में हुई। उन्होंने रायपुर के शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय से 1975 में आयुर्वेदिक मेडिसिन में BAMS की डिग्री हासिल की। इसके बाद 23 साल की उम्र में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। डॉक्टरी करते-करते पार्षद चुनाव लड़कर उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की। 2003 में नए राज्य छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को शानदार सफलता मिली और रमन सूबे के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज करके भारतीय जनता पार्टी के नेता रमन सिंह ने दूसरी और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी अपने नाम किया। डॉ. रमन सिंह वर्तमान में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष हैं और उनकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है। वो जहां जाते हैं, उनसे मिलने भीड़ उमड़ती है। उनके बंगले में फरियादियों को देखा भी जा सकता है। डॉ. रमन उनसे बड़ी आत्मीयता से मिलते हैं और उन्हें उनकी समस्या का समाधान होने का भरोसा भी देते हैं।

मध्य प्रदेश के पूर्व CM को चुनाव में हराया
राजनेता होने के साथ-साथ डॉ. रमन सिंह एक डॉक्टर भी हैं। अपने लंबे राजनीतिक करियर में रमन सिंह ने कई अहम जिम्मेदारियां निभाई हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भारतीय जनसंघ से की थी और वह कवर्धा में इसके यूथ विंग के अध्यक्ष भी रहे थे। 1983 में 31 साल की उम्र में वह कवर्धा नगर पालिका में पार्षद चुने गए। डॉ. रमन सिंह 1990 में पहली बार कवर्धा से विधायक चुने गए और मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। इसके बाद वह 1993 में भी विधायक चुने गए। 1998 में कवर्धा में विधानसभा चुनाव हारने के बाद 1999 में राजनांदगांव लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री को हराने का डॉ. रमन सिंह को इनाम मिला। 1999 से 2003 तक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे।

जहां पहले पार्षद बने, वहीं से विधायक चुने गए
डॉ. रमन सिंह के पिता विघ्नहरण सिंह वकील थे, लेकिन रमन ने डॉक्टरी को चुन लिया। MBBS की डिग्री के रास्ते में उम्र आड़े आ गई। जब कोई चारा नहीं बचा तो रमन ने BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) करके कवर्धा में क्लीनिक खोल लिया। डॉक्टरी के बीच नेतागिरी का चस्का लगा। 1976 में जनसंघ ज्वाइन किया। जनसंघ युवा मोर्चा के कवर्धा अध्यक्ष हो गए। जनता के बीच पैठ बनाने के लिए हर शनिवार क्लीनिक पर मुफ्त चेकअप कैंप लगाते। गरीबों का मुफ्त में इलाज करते। रमन की मेहनत और लगन देखकर गरीब आदिवासी जनता ने नया नाम रख दिया… शनिचर डॉक्टर…. अब बारी थी इस काम और नाम को भुनाने की। 1983 में डॉक्टर साहब कवर्धा में पार्षद का चुनाव लड़े और जीते। 1990 के दशक में सुंदरलाल पटवा ने बस्तर से झाबुआ तक पदयात्रा निकाली थी, उसमें डॉ. रमन सक्रिय रहे, जिसके बाद उन्हें टिकट भी मिल गया और जिस कवर्धा में पार्षद हुए थे, वहीं विधायक चुने गए।

रमन के नेतृत्व में लड़ा गया विधानसभा चुनाव
साल 2000 जब मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ नया राज्य बना। बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार दिलीप सिंह जूदेव थे। उन्होंने आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम किया था। कथित धर्म परिवर्तन को रोका, लेकिन जूदेव के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन ने पूरा पांसा ही पलट दिया। बीजेपी के पास चेहरे का संकट पैदा हुआ। इस दौरान 2002-2003 तक डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। 2003 में विधानसभा चुनाव हुआ और भाजपा 90 में से 50 सीटें जीती। कांग्रेस 37 पर अटक गई। अब सीएम कौन बने, तब डॉ. रमन सिंह का नाम सामने आया। 7 दिसंबर 2003 को डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद 2008 और 2013 में भी मुख्यमंत्री बने।

चाउर वाले बाबा से मोबाइल वाले बाबा बने
छत्तीसगढ़ को डॉ. रमन सिंह ने अपने काम और मिस्टर क्लीन वाली छवि के बल पर जीता। बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया। सड़कें, बिजली और किसान हित ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। रमन सिंह को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम स्कीम (PDS) ने देशभर में प्रसिद्धि दिलाई, जो 2012 में लागू हुई। इसके तहत 35 रुपये में 35 किलो चावल बांटा… जिसने रमन सिंह को नया नाम दिया… ‘चाउर वाले बाबा…’। हालांकि, 2013 से 2018 का तक का समय रमन सिंह के लिए चुनौतियों वाला था। धान बेचने वाले किसानों का बोनस सरकार ने रोक दिया। इस बीच डॉ. रमन सिंह ने 55 लाख महिलाओं को स्मार्टफोन बांटने का ऐलान कर दिया। इससे वे चाऊर वाले बाबा से मोबाइल वाले बाबा भी बन गए। महिलाओं ने मोबाइल लिया… लेकिन जनता को यह रास नहीं आया। कांग्रेस ने किसानों के मुद्दों को लपका 2500 रुपये समर्थन मूल्य में धान खरीदने का ऐलान कर दिया। इस घोषणा ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता में बैठा दिया।

वोरा और डॉ. रमन के बीच रोचक मुकाबला
मध्य प्रदेश शासनकाल के दौरान साल 1999 में हुआ राजनांदगांव लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प रहा। यहां मुकाबला कवर्धा से विधानसभा चुनाव हारे डॉ. रमन सिंह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा के बीच था। जब नतीजे आए तो हर कोई हैरान रह गया। 1999 के लोकसभा चुनाव में डॉ. रमन सिंह ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को 26 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। डॉ. रमन सिंह को कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा को चुनाव में हराने का इनाम भी मिला। रमन सिंह को इस जीत के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी से उनका परिचय कराया गया, तब बताया गया कि यही है डॉ. रमन… जिन्होंने दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को हराया है।

राजनीति में डॉ. रमन सिंह पारी

  • 1990: मध्य प्रदेश विधान सभा में कवर्धा सीट से विधायक
  • 1993: मध्य प्रदेश विधानसभा में कवर्धा सीट से विधायक
  • 1998: कवर्धा (विधानसभा क्षेत्र) से विधानसभा चुनाव हार गये
  • 1999: राजनांदगांव (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लोकसभा चुनाव जीता
  • 2002: छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली
  • 2003: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने
  • 2004: छत्तीसगढ़ विधानसभा में डोंगरगांव सीट से उप-चुनाव के माध्यम से विधायक
  • 2008: छत्तीसगढ़ विधानसभा में राजनांदगांव से विधायक और छत्तीसगढ़ में दूसरी बार मुख्यमंत्री
  • 2013: छत्तीसगढ़ विधानसभा में राजनांदगांव से विधायक और छत्तीसगढ़ में तीसरी बार मुख्यमंत्री
  • 2018: छत्तीसगढ़ विधानसभा में राजनांदगांव से विधायक
  • 2018: 18 दिसंबर 2023 तक भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
  • 2023: छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव से विधायक और वर्तमान में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष
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