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Thursday, November 21, 2024

Navratri 2023: नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा के समय पढ़ें यह व्रत कथा, प्राप्त होगा मां चंद्रघंटा का आशीर्वाद

Navratri 2023 Day 3: नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि मां ममता की सागर हैं। उनकी महिमा निराली है। अपने भक्तों का उद्धार करती हैं और दुष्टों का संहार करती हैं। धार्मिक मत है कि शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन श्रद्धा भाव से मां चंद्रघंटा की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी मां चंद्रघंटा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो विधि पूर्वक मां की पूजा-उपासना करें। साथ ही पूजा के समय व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। आइए, व्रत कथा पढ़ें-

व्रत कथा- चिरकाल में महिषासुर नामक असुर का आतंक बढ़ गया था। उसके आतंक से तीनों लोक में हाहाकार मच गया था। भगवान द्वारा प्रदत अतुल बल से महिषासुर बहुत शक्तिशाली बन गया था। वह शक्ति का दुरुपयोग कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमाना चाह रहा था। इस प्रयास में वह लगभग सफल भी हो गया था। उस समय स्वर्ग के देवता भयभीत हो उठे। स्वयं स्वर्ग इंद्र नरेश भी चिंतित हो उठे। महिषासुर स्वर्ग का सिहांसन पाना चाहता था।

उस समय सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी। ब्रह्मा जी बोले- वर्तमान समय में तो महिषासुर को परास्त करना आसान नहीं है। इसके लिए हम सभी को महादेव के शरण में जाना पड़ेगा। उस समय सभी देवता सबसे पहले जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहमति लेकर सभी महादेव के पास कैलाश पहुंचे। स्वर्ग नरेश इंद्र ने आपबीती महादेव को सुनाई। स्वर्ग नरेश इंद्र की बात सुन महादेव क्रोधित होकर बोले-महिषासुर अपने बल का गलत तरीके से प्रयोग कर रहा है। इसके लिए उसे अवश्य दंड मिलेगा।

उस समय भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से एक तेज प्रकट हुई। यह तेज यानी ऊर्जा उनके मुख से प्रकट हुई। इसी ऊर्जा से एक देवी प्रकट हुईं। उस समय भगवान शिव ने देवी मां को अपना त्रिशूल दिया। भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र दिया। स्वर्ग नरेश इंद्र ने घंटा प्रदान किया। इस प्रकार सभी देवताओं ने देवी मां को अपने अस्त्र-शस्त्र दिए।

तब मां चंद्रघंटा ने त्रिदेव से अनुमति लेकर महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। शास्त्रों में निहित है कि कालांतर में मां चंद्रघंटा और महिषासुर के मध्य भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में मां के प्रहार के सामने महिषासुर टिक न सका। उस समय महिषासुर का वध कर मां ने तीनों लोकों की रक्षा की। तीनों लोकों में मां के जयकारे गूंजने लगे। कालांतर से मां चंद्रघंटा की पूजा-उपासना की जाती है। मां अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं। साथ ही सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करती हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना करते हैं।

न्याय और अनुशासन का प्रतीक –मां चंद्रघंटा की उपासना तीसरे दिन की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां इस संसार में न्याय और अनुशासन स्थापित करती हैं। मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद, देवी ने अपने माथे को अर्धचंद्र से सजाना शुरू कर दिया। इसीलिए देवी पार्वती को मां चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। मां शेर पर सवार हैं, जो धर्म का प्रतीक है और उनके शरीर का रंग चमकीला सुनहरा है। मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।

(साभार- दैनिक जागरण)

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